Last modified on 14 जून 2018, at 12:20

दोहा सप्तक-77 / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

स्वागत अभिनव सूर्य का, जो आया है द्वार।
लाया है सब के लिये, किरणों का उपहार।।

चित्रलिखित सी गोपिका, लिखी भित्ति में काढ़।
नैना मूक पुकारते, ऐसी प्रीति प्रगाढ़।।

मधुर मधुर रचना करूँ, जो सबके मन भाय।
रुचिर छंद दोहा लिखूँ, माँ को शीश नवाय।।

चरण शरण हूँ आ गयी, हे अभिमत दातार।
मात कृपा कर दीजिये, निर्मल बुद्धि उदार।।

महक उठी चंपा जुही, विहँस रहा कचनार।
फिर दस्तक देने लगा, मनसिज मन के द्वार।।

खड़ा साँवरा द्वार पर, करता है मनुहार।
दर्शन हित प्यासे नयन, खोल राधिके द्वार।।

अधर साँवरे के धरी, मुरली करे पुकार।
द्वारे पर साजन खड़े, खोलो मन के द्वार।।