भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा सप्तक-76 / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:21, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जीवन मे यदि दुख मिला, मत मुख करो विवर्ण।
तप कर तीखी आग में, सदा निखरता स्वर्ण।।
राष्ट्र सदा उन्नति करे, पाये नित सम्मान।
बने विश्वगुरु जगत में, दो माता वरदान।।
माता द्वारे पर खड़ीं, ओढ़ चुनरिया लाल।
चरणों में नत हो रहे, युवा वृद्ध अरु बाल।।
पारे की डिबिया सदृश, तरल सरल दिनमान।
किरण करों से कर रहा, जन जन की पहचान।।
सदा सत्य की राह में, आते हैं व्यवधान।
सत्साहस के साथ ही, बढ़ पाता इंसान।।
पर स्त्री माता सदृश, पर सम्पति ज्यों धूल।
निरासक्त के ही हृदय, खिलें शांति के फूल।।
नीले अम्बर में उड़ें, बादल ज्यों खरगोश।
प्रकृति सुंदरी नित्य ही, कर देती मदहोश।।