Last modified on 14 जून 2018, at 12:49

दोहा सप्तक-95 / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निष्ठुर पीड़ा की लहर, आती है क्यों पास।
क्यों कर जातीं हृदय को, बारम्बार उदास।।

जीवन में इंसान को, कब मिलता है चैन।
प्रेमपूर्ण खुशियाँ लिये, सतत न आती रैन।।

दुनियाँ कहती है सखी, एक ब्रह्म परमेश।
होता दिनों का सखा, तो करता क्यों ऐश।।

दुनियाँ ऐसी बावरी, सूरत पर बौराय।
यदि होता परब्रह्म तो, होता क्यों न सहाय।।

समझ न मन पाता कभी, जीवन के अभिशाप।
क्षुब्ध रहा करता हृदय, बस अपने ही आप।।

सपने सारे सो गये, जाग रहे हैं नैन।
जब से है आशा मरी, मन कितना बेचैन।।

सबरी के जूठे किये, बेर चखें श्रीराम।
नाता पावन स्नेह का, शेष सभी निष्काम।।