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द्रुपद सुता-खण्ड-32 / रंजना वर्मा

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एक कण्ठ द्रौपदी का, पाँच कण्ठ पांडवों के,
कोटि कोटि कण्ठ सभा, जन थे पुकारते।
श्याम श्याम श्याम श्याम, श्याम श्याम श्याम श्याम,
श्याम श्याम कहते वे, नेत्र-बिंदु वारते।
नैन यों सजल जल, भरे हों जलद मानो,
पलकों को मोतियों से, सकल संवारते।
श्याम श्याम श्याम कह, टेरते वचन बन,
श्याम श्याम साँवरे से, तन मन हारते।। 94।।

गूँजता गगन सारे, टेरते थे रज-कण,
कहतीं दिशाएं श्याम, श्याम श्याम साँवरे।
झरनों की छल छल, सरिता की कल कल,
सागर के कूजन में, गूंजा श्याम साँवरे।
पगली दिवानी हुई, द्रौपदी पुकार रही,
डोलती पवन बोल, रही श्याम साँवरे।
धरती गगन बीच, उन्चासो पवन बीच,
गूँज उठा एक नाम, श्याम श्याम साँवरे।।95।।

खग कुल कूजन में, गूँज उठा नाम यही,
पंछियों के पर चढ़, उड़ा श्याम साँवरे।
अलियों के गुंजन में, तितली के संग संग,
कलियों के सौरभ में, पड़ा श्याम साँवरे।
सुगन्धित समीरण, शीतल को रोक रोक,
क्रुद्ध हो अनिल संग, बढ़ा श्याम साँवरे।
एक अबला का शोक, गूँज उठा तीनों लोक,
हिमगिरि शिखरों पे, चढ़ा श्याम साँवरे।। 96।।