चाँदनी  चन्द्रमा   के   प्यार  में  नहाती  है
चाँद   के   दाग  गंग धार  में  बहाती  है।
रोज जुगनू को सौंपती है किरण की माला
इसीलिये  ये   चन्द्रहार   भी  कहाती  है।।
उगें  मरुभूमि  में  फिर भी सुहाने  फूल  खिलते  हैं
कहें क्या यूँ तो फूलों पर भी  कोमल पाँव छिलते हैं।
निगाहों पर लगी बंदिश  छिपे  मुखचन्द्र  घूँघट में
दिलों पर हैं कई  पहरे  मगर दिल फिर भी मिलते है।।
मात  शारदे  हमे  कृपा   महान   दीजिये
बुद्धि हो विशाल माँ अनन्त ज्ञान दीजिये।
नित्य होय दूर ज्ञानहीनता घमण्ड भी
दृष्टि नेह  की  रहे  यही  विधान  दीजिये।।
साँवरे  पुकारती  है  आप  को  वसुन्धरा
आज विश्व का स्वरूप पाप ताप से भरा।
आप  ज्ञान  दान   की  परंपरा   चलाइये
आप  के  प्रताप  से  धरा  विशाल  उर्वरा।।
भूलो हर बीती बात, आज  को  जी  लो
जो दिये वक्त ने जख़्म, सभी को सी लो।
कहता है समय  पुकार, यही  है  जीवन
लाया मधुरिम जो आज, सुधा रस पी लो।