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मुक्तक-43 / रंजना वर्मा

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श्याम को वंशी बजाना आ गया
गोपियों के दिल लुभाना आ गया।
कंकरी से फोड़ कर मटकी उसे
आज माखन भी चुराना आ गया।।
.
संवरिया तुझ से नाता जोड़ कर आयी
तेरी खातिर जमाना छोड़ कर आयी।
तेरे बिन अब यहाँ पर कौन है अपना
उमर की दौड़ है इस मोड़ पर आयी।।

उन्हें है जीत मिलती कुछ जो करने से नहीं डरते
पड़ा हो पृष्ठ सादा रँग भरने से नहीं डरते।
वही पाते हैं मोती डुबकियाँ लेते समन्दर में
मिले मंजिल उन्हें जो यत्न करने से नहीं डरते।।

सामना करते मुसीबत का गिला करते नहीं।
देख बाधा राह चलने से कभी डरते नहीं।
जिंदगी हरदम उन्ही के सौम्य मुख है चूमती
वक्त से पहले जो हिम्मत हार कर मरते नहीं

विषम है वक्र है बल खा रहा है
समय का चक्र चलता जा रहा है।
उमर है नागफनियों सी कटीली
मगर यह प्राण सम्बल भा रहा है।।