भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्तक-80 / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:44, 15 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=मुक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी को दर्द दे दिल को खुशी नहीं मिलती
कभी दे गैर को दुख जिंदगी नहीं मिलती।
नहीं है प्यास बुझती है न नीर गंगा का
अगर हो प्यार सब से बेरुखी नहीं मिलती।।

आया सावन मास सखी सब झूल रहीं झूला
गाती मधुरिम गीत देख कर मन मेरा फूला।
याद रहा बचपन कजरी वो रिमझिम बरसातें
देखी मेंहदी रची हथेली मन सब दुख भूला।।

रात गलती रही दिन सुलगता रहा
उम्र ढलती रही ख़्वाब उगता रहा।
जिंदगी बिन कोई शर्त जीते रहे
खग हृदय आस के बीज चुगता रहा।।

अपनी क्षमताएं जान भी लीजे
क्रोध में काम मत कभी कीजे।
है अँधेरा प्रकाश की कीमत
मान अपमान सम समझ लीजे।।

सदा होता रहा है देश में सम्मान नारी का
मगर अब हो रहा अपमान है हर पग बिचारी का।
सभा में कौरवों के चीर द्रुपदा की बढ़ाई थी
इसी से तो जगत में नाम है बाँके बिहारी का।