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मुक्तक-83 / रंजना वर्मा

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अगर माँगे धरा सर्वस्व का बलिदान दे देना
हमेशा देशरक्षा के लिये तुम प्राण दे देना।
न ऐसे शत्रु से डरना जो देता है सदा धमकी
मगर डर शत्रुओं से तुम न अपना मान दे देना।।

बाँसुरी धुन सुनाने लगी
दिल हमारा लुभाने लगी।
रूप नयनों के आगे फिरा
श्याम की याद आने लगी।।

निर्मल जल से ही तन का मल धुलता है
मीठी वाणी में अपनापन घुलता है।
लाख प्रयास करे कोई बाहर से पर
दिल का दरवाजा अंदर से खुलता है।।

यदि इरादा नहीं था बुरा आप का
तो किया काम क्यों है ये सन्ताप का ?
आप यूँ तो हमारे हैं हमदर्द पर
क्यों है कारण बना ऐसे अभिशाप का।।

नाम उस का बुरा नहीं होता
स्वार्थ से जो भरा नहीं होता।
दोस्ती के लिये शज़र चुन लें
जो कभी बेवफ़ा नहीं होता।।