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हारना नहीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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सूखी नदियाँ
हारना नहीं
ये हसीन ज़िन्दगी,
स्वार्थी के लिए
कभी वारना नहीं।
नहीं जानते-
है तुझमें उजाला
हर पोर में
भरा सिन्धु बावरा।
डूबने देना,
जो हैं छल से भरे,
दिखाते दया
उन्हें तारना नहीं।
हारोगे तुम,
हम हार जाएँगे
यूँ कभी नहीं
उस पार जाएँगे।
काम बहुत
अभी करने हमें
घाव बहुत
रोज़ भरने हमें
नम हों आँखें
उड़ते ही जाना है
मिलके चलें
भले राहें कँटीली,
और हठीली
कठिन है डगर
आओ बसाएँ
उजियारों से भर
इक नया नगर।
-०-