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घना है वन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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घना है वन
तुम नन्हे हिरना
साथ न कोई
घेरे हैं हिंस्र पशु
घर बाहर
बचकर चलना।
बिखेर रहे
ये मुस्कान भेड़िए
जीभ निकाले
इनसे बचना है
बीच इन्हीं के
नूतन रचना है।
तुम नहीं वो
जिसे खूनी जबड़े
ग्रास बनालें
वह भी नहीं तुम
जिसको चाहे
बना कथा उछालें।
तुम हो वह
जिसने मरु सदा
हरे बनाए
आए भारी अंधड़
बाधाएँ लाखों
पर न घबराए।
साथ तुम्हारे
मैं भी हूँ हरदम
न घबराना
उच्च शिखर तक
तुम बढ़ते जाना।
-०-