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इमारत एक आलीशान है दिल / राज़िक़ अंसारी
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इमारत एक आलीशान है दिल
कई दिन से मगर वीरान है दिल
कभी ग़ालिब के जैसा शोख़ चंचल
कभी तो मीर का दीवान है दिल
तुझे क्या हमने समझाया नहीं था
मोहब्बत में बड़ा नुक़्सान है दिल
किसी की बात सुनता ही नहीं है
बहुत गुस्ताख़ नाफ़रमान है दिल
तबाही का नहीं अफ़सोस लेकिन
रवैये से तेरे हैरान है दिल