Last modified on 21 जून 2018, at 14:22

आए नोचने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 21 जून 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


आए नोचने
वे सारी ही खुशियाँ
देकर गई
जो सुरमई साँझ,
भर आँचल;
रोपी फसलों जैसी
धूप झेलते
उगाई गोड़कर
परती खेत
सींचा, पिला पसीना-
उगे अंकुर
मधुर सपनों-जैसे
पपोटे हँसे
दौड़ पड़ा था कोई
रौंदने उन्हें
पहन लोहे के बूट
कुचले गए
खुशियों के वे शिशु ,
सारे सपने
जो रातों जागकर
पिरोए कभी
कल्पना के धागे में।
हँसे कि रोएँ?
सवाल ढेर सारे
आओ पोंछ दे
हम गीले नयन
एक दूजे के
गले मिल मुस्काएँ
नए गीत बनाएँ।
-0-