कौन कैसा पता नहीं होता
घर में जब आइना नहीं होता
तीन मुंसिफ यहां हुए  जब से
एक  भी  फैसला नहीं  होता
सोचकर  तुम कदम बढ़ाना अब
प्यार  का  रहनुमा  नहीं  होता
मैं   वफ़ा  करके  भी  कहाँ सोया
बेवफा   रतजगा   नहीं   होता
लोग   काँटे   बिछा   गए  लेकिन
कम  मेरा  हौसला  नहीं   होता