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प्रेय / महेन्द्र भटनागर
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आस्था - दीप / जलता रहे
सपना एक / पलता रहे
आत्म-साधन के लिए इतना बहुत है !
जीवन - चक्र / चलता रहे
यम का पाश / छलता रहे
प्राण - धारण के लिए इतना बहुत है !