भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावधान / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:06, 16 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=अनुभूत क्षण / महेन्द्र भटनागर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंधेरा है, अंधेरा है,
बेहद अंधेरा है !
घुप अंधेरे ने
सारी सृष्टि को
अपने जाल में / जंजाल में
धर दबोचा है,
घेरा है !

नहीं; लेकिन
तनिक भयभीत होना है,
हार कर मन में
पल एक निष्क्रिय बन
न सोना है !
तय है
कुछ क्षणों में
रोशनी की जीत होना है !

आओ
रोशनी के गीत गाएँ !
सघन काली अमावस है
पर्व दीपों का मनाएँ !

तम घटेगा
तम छँटेगा
तम हटेगा !