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आओ, चलो तो जरा / भावना कुँअर

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पकड़ो हाथ
चलो तो मेरे साथ
तुम्हें ले चलूँ
बचपन के पास।
खूब बरसा
कल रात जो पानी
उसमें चलो
कागज की नाव से
कर आते हैं
एक बार फिर से
बेख़ौफ होके
वो बचपन वाली
लम्बी- सी सैर।
त्रस्त हो चला अब
रोज- रोज ही
कड़वे वचनों को
पीकर मन।
आओ, चलो तो जरा
रंगबिरंगा
शरबत सा मीठा
चुस्की का गोला
फिर से बनवा लें।
कूदे जीभर
बरसात के संग
भूल के रिश्ते
और सारे बंधन
टूटे झुलसे
मन की तपस को
आज मिटा लें
जीभर चलो जरा
यूँ शीतलता पा लें।