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बदली का दिन / कीर्ति चौधरी

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यह आज सुबह
जो बादल छाए
धुँधुआते
              तो धूप
              खिली ही नहीं
              और दिन बीत गया।

यह नहीं कि
खेतों में ही
सोना बरसा हो
              दिन तो बस
              यों ही यों ही-सा
              कुछ बीत गया।

ज्यों
बिन जाने
बिन खर्च किए
              मन का मधुघट
              हम सहसा देखें,
              यह लो, यह तो रीत गया।