भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुद्धू / शंख घोष / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 14 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंख घोष |अनुवादक=प्रयाग शुक्ल |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कोई हो जाये यदि बुद्धू अकस्मात, यह तो
वह जान नहीं पाएगा खुद से। जान यदि पाता यह
फिर तो वह कहलाता बुद्धिमान ही।
तो फिर तुम बुद्धू नहीं हो यह तुमने
कैसे है लिया जाना?
मूल बंगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
(हिन्दी में प्रकाशित काव्य-संग्रह “मेघ जैसा मनुष्य" में संकलित)