भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आकण्ठ भिक्षुक / शंख घोष / प्रयाग शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 14 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंख घोष |अनुवादक=प्रयाग शुक्ल |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आकण्ठ भिक्षुक, कहो कुछ कानों में
गृहस्थ के, उसकी स्थिरता सब
भंग करो, कार्निश से उसकी
झरा दो प्रपात,

बंशी बजाओ भेद तन मन उसका
गुनगुन नचाओ उसे पथ-पथ पर भीड़ जहाँ
देखो तब भी कितनी बची हुई

उसके शरीर से लगी हुई
मोह-सिक्त मूर्खता!

मूल बंगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
(हिन्दी में प्रकाशित काव्य-संग्रह “मेघ जैसा मनुष्य" में संकलित)