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पेड़े रामोतार के / कुमार मुकुल

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पटना के अर्धनगरीय इलाक़ों से गुज़रते

सड़क किनारे की दुकानों में लगे

शीशे के जारों में

नज़रें कुछ ढूंढ़ती रहती हैं


पाँव भागते रहते हैं

पर निग़ाहें

जारों में बन्द पदार्थों से लिपटतीं

उनका स्वाद लेती चलती हैं

पारचूनी दुकानों की धकापेल में

चौक-चौराहों पर आसन जमाते जा रहे

भूँजे की दुकानों के पास

पाँवों को अक्सर

अपनी बाग थामनी पड़ती है

जहाँ शीशे के पीछे झाँकता रहता है

चना-मूंगफली-मकई-मटर का भूँजा

और चूड़ा-फरही

कभी-कभी तिल की लाई

और अँचार अक्सर


स्वाद में लड्डू को मात देने वाले

बेसन-गुड़ के लकठों की बात क्या

और अब जबकि कोयल कूकने लगी है

और बौरों को झाड़ते

उभरने लगे हैं टिकोड़े

चैत के पसरते तीखेपन के साथ

पसरने लगे हैं सत्तूवाले भी नगर में


पटना जंक्शन के भीतर

फेरी लगाने का लाइसेंस नहीं है इन्हें

पर टिकसबाबू को टिकट देकर बहराती

धूप में सजी सत्तू-नींबू-प्याज

और कटी हरी मिर्च का गिलास पिलाने वाली

दुकानों पर

सत्तूखोरों की जमात जुटने लगती है

नगर के फुटपाथों पर

अपार्टमेंट्स की छाया में तो

भरपेटा सत्तू खानेवाले मजूरों की

अलग बैठकी ही लग जाती है


इस तरह तो

अमजीरा-भूजा-बेल और सत्तू मिलकर

आगे चाय और बिस्किट को

देश निकाला दे दें तो अचरज नहीं


यूं आज के ग्लोबल विलेज में

जीभ की जी-हजूरी कितनी करेंगे आप

पर अरसे से

सँवलाए पेड़ों का स्वाद

नहीं मिला यहाँ

सफ़ेद मैदे की लोई-सी सपाट

ऊपर से चन्दन-टीका लगाए पेड़े तो

मिल भी जाते हैं

क्वालिटी कार्नर्स पे

पर दही-चिउड़ा-खांड़-चीनी

और साँवले बीच से धँसे पेड़ों वाली दुकानें

कहाँ नज़र आती हैं अब

डेयरीवालों से दूध नहीं बचता शायद

यूँ अब वह भी बनाती है पेड़े- गुलाब जामुन

लाल, घी से चपचपाते स्वाद वाले

इसी के निकट के स्वाद वाले

पीली सफ़ेदी लिए पेड़े

रेडियो स्टेशन के पश्चिम वाली सड़क पर

मिल जाते हैं

पर कुछ ज़्यादा ही चीनी वाले

भसभसाते

जीभ पर रखते हवा हो जाने वाले

उन पेड़ों की सूरत नज़र नहीं आती

जिन्हें गाँव की गुमटी पर

या संदेश बाजार पर खिलाते थे भीम चाचा

फिर रामोतार के ही दस पैसे के

बताशे के आकार के

घर के बने खोए के स्वाद वाले

पेड़ों को कैसे भूला जा सकता है

ख़ासकर जब उस स्वाद का

एक चेहरा भी हो

यूँ तो झाल-मुरही ही बेचते थे रामोतार

पर पेड़े भी होते थे कुछ

दुबके कोने में

जिन्हें चूहे सा कुतरता खाता मैं


पैसे ना होने पर

एक रद्दी अख़बार देने पर भी

मिल जाता था एक पेड़ा

गांधी जी की तरह ठेहुने तक

धोती पहनते थे रामोतार

एक तेलकट गंजी और सिर पर

काली तख़्तियों वाली चारखूँटी टोकरी होती


बाइस साल हो गए अब तो

क्या उनके सर से उतर गई होगी टोकरी

और उन्होंने भी खोल ली होगी

अच्छी सी गुमटी...

स्कूल के आठ वर्षों में तो

उतर नहीं पाई थी वह


रामोतार की तरह

उनके पेड़ों का भी

एक चेहरा होता था

तलहथी और काले अंगूठों से

दबाकर बनाई गई

ढलवा धसान वाले पेड़े

जिन्हें अंगूठे और अंगुलियों के बीच

पोरों पर इस तरह टिकाता मैं

कि आसानी से घुमा पाता चारों ओर

और कुतर पाता उसे, कोरों से

पूर्व मुख्यमंत्री आवास के पास लगे

लेटरबाक्स से सटे हुआ करती थी कभी

दही-चूड़ा-चाय-पान की दुकान

वहाँ भी दिखते थे साँवले पेड़े कभी-कभार

जहाँ हम दीपक-राजू चाय पीते अक्सर

और पंजे लड़ाते कभी-कभार

बेंच पर बैठे-बैठे


अब तो उखड़ गई वह दुकान

मंतरी चले गए हाशिए पर

अब तो लिट्टी-चोखा-खैनी छाप

आए हैं नए मंतरी

जिनकी लिट्टी उनके विधायक-संतरी पकाते हैं

और दुकान की इजाज़त नहीं अब

सवाल सुरक्षा का है

तो क्या वे पेड़े नहीं मिलेंगे अब

अरुण कमल बताशे खिलाते हैं

पीठा-पुआ भी कभी-कभी

और प्रेम कुमार मणि के यहाँ

गुड़-घी-तेल-तीसी-मेथी के काले लड्डू

मिल ही जाते हैं साल में एकाध बार

अजय-श्रीकांत मंगाते रहते हैं भोजपुर का खुरमा

पर पेड़े कहाँ मिलेंगे


दिल्ली में गौरीनाथ खिला देंगे

सींगी मछलियाँ भूँजी हुई

बनारस में मिल जाएगा

दूध-दही-खोया काफी

गुड़ की भेलियाँ भी मिल जाएंगी

काशीनाथ सिंह के यहाँ

और दानिश खिला देंगे लवंगलता प्रसिद्ध


कनॉट प्लेस पर

सींकों पर टंगा अल्हुआ (शकरकंद) खाती

जींस-पैंट धारी लड़कियाँ भी मिल जाएंगी आपको

और जलेबी-कचौड़ी की दुकानें भी

बिहारी बहुल बस्तियों में

दर भी पटना से कुछ कम ही

पर सवाल

रामोतार के पेड़ों का है


सावन में बाबाधाम की परसादी

कहीं से आती है

तो लपककर उठा लेता हूँ

टुकड़े पेड़े के

फिर लचिदाने-चूड़े पर आता हूँ

आखिर बताशों के बाद

लचिदाने भी

एक नेमत ही हैं।