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चित्र /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
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ओस
या कि पसीने की बून्दें
श्रम-शलथ धरती के माथे पर ...
धूप
या कि ओढ़नी मज़दूरिन की,
छाँह के किनारे पर ...
यह खनक
चूड़ियों की, बर्तनों की
या, टूटी ज़िन्दगी की झनझनाहट ओसारे पर ...
एक लम्बा दिन
या कि भूखा अजगर
राह के किनारे पर !