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सहवर्ती / महेन्द्र भटनागर
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वेदना-धर्मी तरंगों !
और कितना
और कब-तक
गुदगुदाओगी मुझे ?
कितना और
कब-तक और
बेसाख्ता
हँसाओगी मुझे ?
भुज-बन्ध में भर
और कितनी देर तक
और कितनी दूर तक
अनुरक्त सहयोगी
बनाओगी मुझे ?
ओ वेदना-धर्मी तरंगों !
क्रूर
आहत-चेतना-कर्मी तरंगों !