भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अर्श पर तूफ़ाँ उठा आए ... / सुरेश स्वप्निल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:55, 19 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश स्वप्निल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

'अर्श पर तूफ़ाँ उठा आए युँ ही
हम ख़ुदा का दिल चुरा लाए युँ ही

चाँद से कुछ दिल्लगी की बात की
और दीवाना बना आए युँ ही

चश्म नादाँ जिस तरह बा-सब्र है
चैन बेबस रूह भी पाए युँ ही

खोल कर रख दी हक़ीक़त सामने
शाह की नज़रें झुका आए युँ ही

दाँव पर है ज़िन्दगी दहक़ान की
इक उमीदों की घटा छाए युँ ही

क़ैद है दिल की रग़ों में जो लहू
अश्क बन कर आज बह जाए युँ ही

उम्र भर ईमान पर क़ायम रहे
पर ख़ुदा को कौन समझाए युँ ही !'