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अच्छे दिनों की बात ... / सुरेश स्वप्निल
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लोग मौसम की दुहाई दे रहे हैं
आप इस पर क्या सफ़ाई दे रहे हैं ?
चार दिन बैठे नहीं हैं तख़्त पर वो
ऐब<ref>दोष</ref> खुल- खुल कर दिखाई दे रहे हैं
थी बहुत उम्मीद जिनको शाह जी से
आज उनके ग़म सुनाई दे रहे हैं
दे रहे हैं दिल कहीं तो जान लीजे
ज़िन्दगी भर की कमाई दे रहे हैं
क्या इन्हीं अच्छे दिनों की बात की थी
ख़ूब दिल से बेवफ़ाई<ref> कृतघ्नता </ref> दे रहे हैं
क्यूं क़सीदे<ref>स्तुतियाँ</ref> हम पढ़ें इन हाकिमों के
कौन सी हमको ख़ुदाई<ref>ऐश्वर्य</ref> दे रहे हैं !
ताजिरों<ref>व्यापारियों</ref> के हाथ दे दी ज़िंदगी भी
आप कैसी रहनुमाई<ref>नेतृत्व</ref> दे रहे हैं ?
शब्दार्थ
<references/>