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कहा-सुना मेरा ... / सुरेश स्वप्निल

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मर्सिया आपने पढ़ा मेरा
मक़बरा आज रो दिया मेरा

लोग तो दिल जलाए बैठे हैं
क्या बुरा है कि घर जला मेरा

मौत ही दाएँ-बाएँ होती थी
दर हमेशा खुला मिला मेरा

उन्स कहिए कि आशिक़ी कहिए
सर अदब में झुका रहा मेरा

इस तरफ़ मौज उस तरफ़ साहिल
लुट गया आज नाख़ुदा मेरा

बदगुमानी तबाह कर देगी
मानिए आप मश्वरा मेरा

एक दिन एतबार कर देखें
दिल ज़ियादह बुरा नहीं मेरा

हिज्र का वक़्त आ गया यारों
माफ़ कीजे कहा-सुना मेरा !

(2016)