भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोहरे बिन व्याकुल / मनोज कुमार ‘राही’

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:02, 21 जुलाई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनवाँ छै तोहरे बिन व्याकुल
हे ! ज्ञान के मैया !
एक तोहरा आस छै,
देखै के अभिलाषा छै
दिलवा में तोहरे छै मूरत,
हे ज्ञान के मैया
मनवाँ छै तोहरे

बरसों से बैठलोॅ छियौं
तोहरे बिनु विहवल छियौं
एक छै हमरोॅ अपनोॅ आस,
अबकी दर्शन दिहोॅ
मनवाँ छै तोहर

चोहू ओर अंधकार छै,
भंवर में फंसल पतवार छै,
नैया हमरोॅ करिहोॅ पार,
हे ज्ञान के मैया
मनवाँ छै तोहर

कथी केरोॅ अभिमान,
केकरा पेॅ गुमान
एक तोहीं छौं हमरोॅ भगवान,
विद्या के दे दिहोॅ दान
हे ज्ञान के मैया
मनवाँ छै तोहरे