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अकासियो / लक्ष्मीनारायण रंगा
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अन्धारै रै खम्भे
टंग्यो है
अकासियो,
रात रै जै‘र नै
पीवै है
अकासियो,
अमूझै री घुटण
घुटै है
अकासियो
आन्धी री पीड़ पी
मुळकै है
अकासियो,
रात भर अेकलो
बळै है
अकासियो,
दूजां रै खातर
जगै है अकासियो
अंधियारै माथै
उजाळै री जै
प्रगटै है
अकासियो,
म्हारै मन मांय
सैचन्नण है
अकासियो