भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मा (दोय) / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 24 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कूड़ो है औ संसार
इण माथै पाप री छियां है।

अबोट अर अछूती है
इण धरती माथै
म्हारी मा री छियां।

घणी अळगी है
पापी समाज रै चकारियै सूं
छळी-कपटी नीं आय सकै
म्हारी मा री छियां रै पसवाड़ै।

सुरग-सो दरसाव
जद मा घर मांय बिराजै
मा जद नीसरै घर सूं
घर खाली लखावै
घर, घर नीं रैवै
भाटां रो ढीगो लागै घर।