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मा (छव) / राजेन्द्र जोशी
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म्हैं डीकरो, डीकरै रो बैरी
बात छूटगी कितरी लारै
चैरो नीं दरसावूं म्हैं
जे जावै तो बात नीं करणी
बापू सागै मा बांट ली।
दिनूगै भाई रै
दोपारी दूजै
सिंझ्या दोनूं न्यारा-न्यारा।
मारग बदळग्या
घर बदळग्या
उण सूं तो म्हैं नीं राखूं
गांठड़ी उनमान बैठी रैवै
जे डीकरै री साख भरै तो
उण डीकरै नै दाय नीं आवै।
आंख्यां मांय नींद नीं आवै
इण डीकरै सूं उण डीकरै री
आंख्यां-आंख्यां बात करावै
आंख्यां पल्लो घाल बैठगी।
जगत सारू आप बैठगी
राखै है दोनूं सूं छानै
दोनूं नै सावळ राखै
अेक जीवणै, अेक है डावै
मार धमीड़ा खावै है।
मा दोनूं री लाज राखसी
भलांई मा री आंख्यां झरसी
भळै ई मा तो मा रैसी।