Last modified on 24 जुलाई 2018, at 22:48

बरस! / राजेन्द्र जोशी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 24 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इयां ई फेरूं आईजै
अेकली
मत आईजै नागोरण सागै
भोर री बगत
भाजती, मुळकती
कीं तिरस बुझाई जमीं री
बरसणै सूं।

जेठ सूं मन कर्यो
आसाढ-सावण भूलै मती
भादवो उफतायै मती।

उडीक किरसां री
नीं दूध देवण आळी डावड़ी री
आभै भेळा रमणियां कागला अर कोयलड़ी री
दुभांत जिनावरां री।

हिचका मत खाईजै
पैलड़ी गळी
नीं थमणो—
मारग देख लीनो
बदळणो कोनी दूजो
फकत उडीकूं थनै
बरस, बरस, बरस!