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हाइकु 33 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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थारा दर्सण
बणा दै म्हारी आंख्यां
मोर री पांख्यां


जीवण तो ज्यूं
बाळू मंडी लहर
बणै‘र मिटै


प्रेम री आंख
पल-पल बरसै
तिस्सी तरसै