भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 43 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:02, 26 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीनारायण रंगा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सींवणै पछै
कुण राखै है पूछ
सुई-डोरै री
नईं बांधी‘जै
म्हारी अथाग पीड़
छंन्दां रै बंधां
धरती मा री
कूख, जिको जन्में
मा-जायो हुवै