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मजबूर / महेन्द्र भटनागर
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जिन्दगी जब दर्द है तो
हर दर्द सहने के लिए
मजबूर हैं हम !
राज है यह जिन्दगी जब
खामोश रहने के लिए
मजबूर हैं हम !
है न जब कोई किनारा
तो सिर्फ़ बहने के लिए
मजबूर हैं हम !
ज़िन्दगी यदि जलजला है
तो टूट ढहने के लिए
मजबूर हैं हम !
आग में जब घिर गये हैं
अविराम दहने के लिए
मजबूर हैं हम !
सत्य कितना है भयावह !
हर झूठ कहने के लिए
मजबूर हैं हम !