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हाइकु 98 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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आभै री बूंद
पाछी समा जावै है
माटी री गोद
मा तो बस मा
देवता भी तरसै
मा खातर
है कठै घर
गुमग्या सै आंगण
बस होटल