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हाइकु 114 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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काटतो रैयो
मिनख डावो अंग
खुद ई कट्यो
चावै है बै‘कै
अेकसा बोलो, सोचो
रैवो‘र जीवो
जे धरा नईं
तो नीं रै‘वै मेहत
आसमान रो