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हाइकु 126 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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सुख तो तोड़ै
दुख जोड़ै मन नैं
आखै जग सूं
चावां बेचणा
आंधां री बस्ती काच
आंधां हां खुद
थारी सुरता
पाळै मोतीड़ा म्हारै
मन री सीप