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हाइकु 134 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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ऊजाळो देवै
वांनैं बळणो पड़ै
पै‘ला खुद नैं
धोरां री आग
कद समझ पायो
करूड़ आभो
जूनी कैवत
नारी नर री खाण,
क्यूं रै‘या मार?