भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 174 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 27 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीनारायण रंगा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जीवण नईं
म्हैं जी रैयो हूं बस
थारी यादां ई
गीत-गजल
सै थूं ईज रचावै
म्हैं तो कलम
जुदो हुयो थूं
अबोला रो रै‘या है
घर-आंगण