स्वतंत्र / महेन्द्र भटनागर
आकाश है सबके लिए,
अवकाश है सबके लिए !
विहगो !
उड़ो,
उन्मुक्त पंखों से उड़ो !
ऊँची उड़ानें
शक्ति-भर ऊँची उड़ानें
दूर तक
विहगो भरो !
विश्वास से ऊपर उठो;
गन्तव्य तक पहुँचो,
अभीप्सित लक्ष्य तक पहुँचो !
ऊँचे और ऊँचे और ऊँचे
तीव्र ध्वनि-गति से उड़ो,
निडर होकर उड़ो !
आकाश यह
सबके लिए है —
असीमित
शून्याकाश में
जहाँ चाहो मुड़ो,
जहाँ चाहो उड़ो,
ऐसे मुड़ो; वैसे मुड़ो,
ऐसे उड़ो; वैसे उड़ो,
सुविधा व सुभीते से उड़ो !
अपने प्राप्य को
हासिल करो !
स्वच्छंद हो, निर्द्वन्द्व हो,
ऊर्ध्वगामी, ऊर्ध्वमुख;
गगनचुम्बी उड़ानें
दूर तक
विहगो भरो !
न हो
कोई किसी की राह में,
बाधक न हो
कोई किसी की
पूर्ण होती चाह में !
स्वाधीन हों सब
स्वानुशासन में बँधे,
हम-राह हों
सँभले सधे !