भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिंदगी का दोहा / लोकेश नवानी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:24, 30 जुलाई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दग्ड़या हम छळना छवां अफु तैं ही हर बार।
ये ठगण्यां संसार मा क्वी नी कैको यार।।
जतगा लगदा मी तईं जण्दु छंउ संसार।
उतनै लगद अजांण मी या दुनिया हर बार।।
तन मोरणा जुग ह्नेइ गे मन नि भोरे इक बार।
पूरी नि तिसना ह्ने कबी भुला यी च संसार।
किलै कनूं रौं कै खुणी पिळच्यूं रयूं सदान।
दुनियल बोली फर्ज छौ कै पर क्यांकु असान।।
दिखलौटी की भयात अर बल स्वारथ को प्रेम।
अर मतलब की यारईं काम नि आंदि कुटैम।।
भै भयात अर प्यार छन पुरण जमन की बात।
अब ता अपणी कुटमदरी अपणी अपणी बात।
मिल जैकी अंगुली पकड़ लगै तरक्की बाट।
वो म्यारू भै आजकल करदा मेरी काट।।
दया धर्म अर प्यार छन पुरण जमन की बात।
बड़ु वो जैकी गिच्चि बड़ी बड़ि बड़ि जैकी बात।।
कुकुरगती ह्ने मन्खि की कुकुरमय च संसार।
टंगड़ि बिलकदा अपणा की पांदा हर्ष अपार।।
तुम छौ काणां की जोनि मा टोकर्या हैकौ मुन्ड ।
कांव-कांव करणा रवा ठूंट नि ह्ने जौ खुन्ड ।।
नाता नि रैनि भयात नी प्रेम कु रै नि जुनून।
पैसा का बान च भै कनू अपणा भै कू खून।।
ह्वेलि बड़ू तू औरु कू क्या तेरू व्योहार
बिरणौं दगड़ी सकदु नी कर्द अपण पर मार।।
हरचिन फुलसंगरांद अर वो होर्यूं का गीत।
भैलों की छै रौंस कन भोरीं रोट्यूं की प्रीत।।
बौनों तैं अगनै करी बण नी सकदु महान।
पोथड़ा लेखीं पचास वो करीं लाख गुणगान।
भूतपुजै मा किनगोड़ा हींसर और कंडालि।
क्वी नी पुजदो आजकल पंयां पिपलै डालि।
जो जो रावण कैरि ग्या जो जो करिगे कंस।
नाम अलग बदनाम ह्वे और नि रायो बंस।।
उंकु नि रै क्वी पुछदरू खड़िक बांज की डालि।
जौं पर बोटदि अंग्वाल छै मेरी मांजी ब्यालि।।
यकुलि कूड़ि दिन गैंणदी बुडड़ी चिमनी बालि।
ब क्वी भेटणौं जांदु नी पुरण पिफल की डालि।
तिन गदनी कू नास कै एक माछि का बान।
एक कटोरि का बान तिन ले कतनौं की जान।।