भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
122.163.226.148 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 08:48, 21 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: इक सितारा टिमटिमाता रहा सारी रात वो सुलाता रहा और जगाता रहा पहलू में कभ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इक सितारा टिमटिमाता रहा सारी रात

वो सुलाता रहा और जगाता रहा

पहलू में कभी, कभी आसमान पर

वह उनींदे की लोरी सुनाता रहा।


इक ...


रूप उसका समझ में क्‍या आए कभी

रोशनी उसकी पल में आये-जाये कभी

खुशबू उसकी और उसके पैरहन

सपनों से नींद में आता जाता रहा।


इक ...


रंग उसका और उसकी आवाज क्‍या

लाऊं आखर में मैं उसके अंदाज क्‍या

रू-ब-रू उसके आंख खुलती नहीं

भोर तक उस पे नजरें टिकाता रहा।


इक ...


पलकों पे शबनम की बूंदें हैं अब

और रंगत फलक की श्‍वेताभ है

सूर्य आएगा इनको भी ले जाएगा

मानी क्‍या मैं रोता या गाता रहा।


इक ...


{1998- फैज के लिए }