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कूक न कोयल इस आँगन में / रूपम झा
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कैसे कहूँ फाग का अनुभव
रंग नहीं है इस जीवन में
पैसा कौड़ी हाथ नहीं है
समय हमारे साथ नहीं है
चुकता करें उधारी कैसे
मन उलझा है सौ उलझन में
मरद मेरा परदेस गया है
कहा वहाँ बीमार पड़ा है
क्या कह बच्चों को बहलाऊँ
डर बैठा है अंतर्मन में
कैसे मैं त्यौहार मनाऊँ
जाकर कहां हाथ फैलाऊँ
दुखियारी क्या तान सुनेगी
कूक न कोयल इस आँगन में