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कान्हा-सन सोभाव / अरुण हरलीवाल

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करिया हइ काया, मगर
मिसरी-नीयन बोल...
बस, दिलवालन के पता--
को कोयल के मोल।
महकइ माँजर आम के
जब अधराती बाद...
बास पिया के साँस के
आवइ बरबस याद।
महक पिया के याद के
भरल हमर घर-बार...
जस कचरस अउँटा रहल
नजकाही कलसार।

अनभो भेल, बसंत में
गजबे के बदलाव...
कुछ-कुछ कंसो के लगइ
कान्हा-सन सोभाव।

अलबम से बाहर निकस
फोटुअन गावथ फाग...
पानी में कइसे लगल
आज अचानक आग!

सउँसे बाताबरन में
कउन घोरलक भाँग...
अधरतिये देवे लगल
मन के मुर्गा बाँग!

फागुन सबके देह पर
पोरइ नेह-अबीर...
पता कहाँ हइ ओकरा
बिरही मन के पीर!

फूल खिलल मनबाग में,
तन में भरल सुबास...
परदेसी के चिट्ठिया
जिया जगउलक आस।