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धरती के गहना / अरुण हरलीवाल

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आके धनखेता से पवना रे!
की गावे, नचे बिचे अँगना रे!

ए सजनी, बूझऽ तनी तूँ एकर भासा;
कह रहलो, पुर जइतो तोहर सभे आसा।
दूधीारल डुब्बा में डूबल हे खाजा,
चान सरद पुनिया के, अमरित चुआ जा!
सच होवत अँखजोगल सपना रे!
घरे-घरे बाँटव हम बयना रे!

तोहरे पसेना से तिरपित हे धरती;
कम खाना, गम खाना तोहर परकिरती।
मेहनत के दूता तूँ, धरती के पूता;
छप्पर नइँ, रोटी नइँ, धोती-नइँ-जूता।
पर, तूँही धरती के गहना रे!
मिस्री-सन मीठ तोहर बचना रे!