भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खड़े हैं लाखों / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
1
कँटीली राहें
पथरीली चढ़ाई
हाथ थामना !
2
खड़े हैं लाखों
रक्तपायी पथ में
बचके चलो !
3
शंकित दृष्टि
बींधती तन-मन
दग्ध जीवन !
4
भाग्य का लेखा
भला करके भी तो
सुख न देखा !
5
तुम्हारी आँखें-
आँसू का समन्दर
पीना मैं चाहूँ।
6
पोंछ लो आँखें
सीने में छुप जाओ
क्रूर हैं घेरे ।
7
यज्ञ रचाया
मन्त्र भी पढ़े सभी
शाप न छूटा।
8
जलती रही
समिधा बन नारी
राख ही बची ।
9
छूटे तो छूटे
चाहे प्राण अपने !
हाथ न छूटे।
10
सिन्धु तरेंगें
विश्वास की है नैया
पार करेंगे।