भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अद्भुत / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:33, 22 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर }}...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी _

अपने से पृथक धर्म वाले
आदमी को
प्रेम-भाव से _ लगाव से
क्यों नहीं देखता?
उसे ग़ैर मानता है,
अक्सर उससे वैर ठानता है!
अवसर मिलते ही
अरे, ज़रा भी नहीं झिझकता
देने कष्ट,
चाहता है देखना उसे
जड-मूल-नष्ट!
देख कर उसे
तनाव में
आ जाता है,
सर्वत्र
दुर्भाव प्रभाव
घना छा जाता है!
ऐसा क्यों होता है?
क्यों होता है ऐसा?
कैसा है यह आदमी?
गज़ब का
आदमी अरे, कैसा है यह?
ख़ूब अजीबोगरीब मज़हब का
कैसा है यह?
सचमुच,
डरावना वीभत्स काल जैसा!
जो - अपने से पृथक धर्म वाले को
मानता-समझता
केवल ऐसा-वैसा!