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कभी पास तुमको बिठा सकूँ / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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कभी पास तुम को बिठा सकूं, तुम्हें दिल का हाल सुना सकूं
जो तुम्हारे दिल में उतर सके, वो वफ़ा का गीत मैं गा सकूं
मुझे एक ज़ख्म़ से काम क्या, मुझे ज़ख्म़ दे तू हज़ारहा
तभी हो सकूंगा मैं सुर्ख़रू, जो लहू में अपने नहा सकूं
तुझे भूल जाऊं मैं ऐ सनम, मेरे बस की काश ये बात हो
मुझे जैसे तू ने भुला दिया, तुझे काश मैं भी भुला सकूं
तुझे खो चुका हूं जनम जनम, तुझे ढूंढता हूं मैं ऐ सनम
यही मेरे दिल की है आरज़ू, तुझे इस जनम में तो पा सकूं