भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खबरें डराती हैं / अशोक कुमार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 15 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खबरों में दिखा एक सज्जन हुआ दुर्जन
सन्त हुआ कुसन्त
दिखी एक साध्वी अपनी ग्रन्थियों की शिकार
कोई भद्र महिला दुरभिसन्धियों के बुर्ज पर बैठी हुई

खबरों में कोई चोरी कर रहा था
कोई बरजोरी कर रहा था

कोई उग्रवादी गाँव में घुस आया था
कोई आतंकवादी सरहद पार कर आया था
और भून चुका था कई नरम शिकार
संगीनों की आँच में

खबरें दिखा रही थीं
तार तार हुए रिश्तों की लाइव टेलीकास्ट
और वहाँ बैठा कोई संजय बाँच रहा था खबर

संजय हमें कभी दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान ले जाता था
और वहाँ राजनीति में चल रही रामलीला दिखाता था

संजय कभी कहता
अब चलिये मुम्बई के वानखेडे स्टेडियम
वहाँ धर्माचार्य जुटे हैं
अब हम दिखाते हैं धर्म पर हुई
अब तक की सबसे बड़ी बहस

संजय उवाचता
यह ब्रेकिंग न्यूज है
आज एक तरकारी सेंसेक्स की तरह ऊपर चढ़ गयी है
ससुरी नीचे उतरती ही नहीं

और फिर रात चढ़ते ही दिखाते
सेक्स और वारदात की खबरें
जहाँ एक आदमी जोर-जोर से चिल्लाता हुआ
खबरों का बयान तफसील से करता

खबरें देखते हुए मैं अक्सर डर जाता हूँ
और फिर डर कर सो जाता हूँ

खबरें डराती हैं
खबरें देखता आदमी डरता है।