भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लदवा में रात हमने क्या देखा / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 18 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |अनुवादक= |संग्रह=बर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लदवा में रात हमने क्या देखा
आंख खुलते ही चांद सा देखा

क्यारियां धूल से अटी पाईं
आशियाना जला हुआ देखा

फाख्ता सरनिगूं बबूलों में
फूल को फूल से जुदा देखा

उसने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया
उम्र भर जिसका रास्ता देखा

हमने मोती समझ के चूम लिया
संगरेज़ा जहां पड़ा देखा

कमनुमा हम भी हैं मगर प्यारे
कोई तुझ सा खुदनुमा देखा।