Last modified on 18 अगस्त 2018, at 21:36

क्या दिन मुझे इश्क़ ने दिखाये / नासिर काज़मी

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:36, 18 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |अनुवादक= |संग्रह=बर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्या दिन मुझे इश्क़ ने दिखाये
इक बार जो आये फिर न आये

उस पैकरे-नाज़ का फ़साना
दिल होश में आये तो सुनाये

वो रूहे-ख़यालो-जाने-मज़मूं
दिल उसको कहां से ढूंढ लाये

आंखें थीं कि दो छलकते साग़र
आरिज़ कि शराब थरथराये

महकी हुई सांस, नर्म गुफ्तार
हर एक रविश पर गुल खिलाए

राहों पे अदा-अदा से रख्शां
आँचल में हया से मुंह छिपाये

उड़ती हुई ज़ुल्फ़ यूँ परीशां
जैसे कोई राह भूल जाये

कुछ फूल बरस पड़े ज़मीं पर
कुछ गीत हवा पर लहराये।